तीन दिन में उठीं दो अर्थियां, सिंगाही के करदहिया गांव में पति-पत्नी ने की आत्महत्या, ससुराल पक्ष पर गंभीर आरोप

लखीमपुर खीरी/निघासन

जनपद की निघासन तहसील क्षेत्र के सिंगाही थाना अंतर्गत ग्राम करदहिया में तीन दिन के भीतर एक ही परिवार से दो आत्महत्याओं ने पूरे गांव को झकझोर कर रख दिया। पहले पत्नी ने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, फिर पति ने ससुराल पक्ष पर मानसिक दबाव बनाने का आरोप लगाकर जान दे दी। अब पीड़ित परिवार ने ससुराल पक्ष पर गंभीर आरोप लगाए हैं, वहीं पुलिस मामले की जांच में जुट गई है।

घटना करदहिया गांव की है, जहां रहने वाले राम स्नेही गौतम के छोटे बेटे प्रवीण गौतम (26) ने सोमवार देर रात अपने घर में फांसी लगाकर जान दे दी। इससे दो दिन पहले, 29 जून को उसकी पत्नी शिल्पी गौतम (25) ने भी अपने ससुराल  में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। पुलिस ने शिल्पी के आत्महत्या के बाद प्रवीण को गिरफ्तार किया था, ससुराल वालों व परिजनों की मदद से उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया था।

सुलह के नाम पर मांगी 10 लाख की रकम और 6 बीघा जमीन
प्रवीण के पिता राम स्नेही गौतम ने बताया कि बेटे की रिहाई के बाद शिल्पी के मायके वालों ने उसे अपने गांव बुलाकर सुलह की बात की। लेकिन सुलह के बदले 10 लाख रुपये और 6 बीघा जमीन 3 साल के बेटे के नाम करने की मांग रखी। जब प्रवीण ने असमर्थता जताई तो ससुर प्रेम प्रकाश ने कथित रूप से कहा, "अगर नहीं दे सकते तो मेरी बेटी की तरह तुम भी जान दे दो। नहीं तो जेल भिजवा दूंगा।"

घर लौटकर लगा ली फांसी
इस मानसिक दबाव से आहत होकर प्रवीण अपने गांव लौट आया और देर रात अपने कमरे में फांसी लगा ली। घटना के बाद गांव और क्षेत्र में शोक का माहौल है।

परिवार का आरोप – बहू के मायके वाले जानबूझकर कर रहे थे परेशान
प्रवीण की मां दयावती और बहन सीमा ने बताया कि शिल्पी अक्सर घर में विवाद करती थी, जिसके चलते दोनों पति-पत्नी अलग रहने लगे थे। 

परिजनों का कहना है कि प्रवीण निर्दोष था, फिर भी उसके ससुराल वाले उसे जबरन फंसा रहे थे। बहन ने बताया कि भाभी अक्सर लड़ती थीं और उस दिन भी भाई चारा लेने खेत गया हुआ था। ऐसे में हत्या का आरोप सरासर गलत है।

पुलिस जांच में जुटी, अभी नहीं आई कोई तहरीर
थाना प्रभारी अजीत कुमार ने बताया कि शिल्पी की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में हैंगिंग के कारण मौत की पुष्टि हुई है। प्रवीण के शव को भी पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया है। अभी तक किसी भी पक्ष से कोई तहरीर प्राप्त नहीं हुई है। जांच के बाद ही विधिक कार्रवाई की जाएगी।

जनपद में गूंज उठा सवाल – क्या मानसिक उत्पीड़न भी हत्या के बराबर नहीं?
प्रवीण और शिल्पी की मौत ने एक बार फिर रिश्तों की कड़वाहट और सामाजिक दबाव के खतरनाक परिणाम को उजागर कर दिया है। सवाल उठता है कि अगर कोई व्यक्ति दबाव में जान दे दे, तो क्या केवल आत्महत्या मान लेना ही पर्याप्त है? क्या ऐसे मामलों में मानसिक उत्पीड़न के लिए भी कठोर कानून लागू नहीं होने चाहिए?

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